अचार के बारे में सोचते ही हमारे मुँह में एक एहसास सा हमको महसूस होता है यह अचार के अलग स्वाद और चूकि हम सभी अचार का स्वाद को भलि- भाति जानते और समझते है उसके कारण होता है। 

अचार की विधि के हम ‘हिंदुस्तानी’ ही जन्मदाता है और यह हुआ लगभग २४०० ई.पु. के आस पास हुआ।  

इसके बाद बौद्ध लोगो ने जो काफी भ्रमण करते थे अचार को एशिया में काफी प्रशिद्ध किया क्योंकि अचार सफर के लिए काफी ठीक रहता है ना ही तो इसको गरम करने की जरूरत होती है और ना ही इसके जल्दी ख़राब होने का डर, इसी वजह से ये लोग अपनी यात्रा में अचार को अन्य खाद्य वस्तुओं से कुछ ज्यादा ही प्राथमिकता देते थे।

फिलीपींस,इंडोनेशिया,मलेशिया,सिंगापुर,ब्रूनेल आदि देशों ने इस विधि को पूरी तरह अपना लिया। 

इंडोनेशिया से यह नीदरलैंड और फिर अन्य देशों में पहुंच गया।

हमारे देश मे भी अलग अलग राज्यों मे वहाँ पर चीजों की उपलब्धता के हिसाब से अचार को बनाने की कला में काफी अंतर देखा जाता है जैसे -दक्षिणी भारत में अचार तिल  के तेल में जबकि उत्तर भारत में सरसों के तेल में बनया जाता है। दक्षिणी भारत का अचार ज्यादा तीखा भी होता है।

भारत में हरियाणा का पानीपत शहर अचार उत्पादन का प्रमुख केंद्र माना जाता है क्योंकि यहां अचार का करोड़ो का वार्षिक व्यापार होता है। पचरंगा,सतरंगा,और अन्य कई नामो से यहां विश्व प्रसिद्ध अचार बनाये जाते है।

तेलांगना और आंध्रा प्रदेश सबसे तीखे अचार के लिए जाने जाते है। 

तमिलनाडु में आम का अचार अरंडी (castor ) के तेल  में बनाये जाने के कारण एक अनोखा स्वाद लिए होता है। इसके अलावा वहां साबुत लाल मिर्च में दही और नमक भरकर भी अचार बनाया जाता है इसको ‘मोर मोलागई’ कहते है और यह चावल के साथ खाया जाने वाला एक बहुत प्रसिद्ध अचार है।

बचपन से लेकर आज तक हममे से अधिकतर लोग जब भी किसी लम्बे  सफर पर जाते है तो कम से कम दो समय का खाना तो घर से ही साथ लेकर निकलते है, अब चाहे पूरी हो या पुलाव, रोटी हो या परांठा, चावल हो या चिड़वा ये सब बदल बदल कर हो सकते है पर एक चीज है जो नहीं बदलती और वो यही है यानि हमारे सफर का हमसफ़र अचार।

और कई बार हमने देखा है कुछ लोग तो केवल रोटी या परांठा ही बाहर से लेते है बाकी अपने घर से लाये गए अचार के साथ ही रोटी खाकर उनका खाना पूरा हो जाता है।

इस रेसिपी मे आप सब्ज़ी और अचार दोनों का स्वाद ले सकते है और इसको बनाकर अपने साथ अन्य लोगो के स्वाद और सफ़र को यादगार बना सकते है।

बनाने की विधि 

 

सामग्री  

छोटे वाले आलू  १ किलोग्राम 

हल्दी ४ ग्राम 

नमक स्वादनुसार 

सरसो का तेल  ३० मिलीलीटर 

घी १०० ग्राम 

प्याज़ १५० ग्राम 

साबुत लाल मिर्च ७ न. 

लौंग  ५ न. 

राई (सरसों ) ३ ग्राम 

हींग ३ ग्राम

देग्गी मिर्च ५ ग्राम 

जीरा ४ ग्राम 

कलोंजी ३ ग्राम 

सौंफ ४ ग्राम 

गुड़ ३० ग्राम 

अदरक १५ ग्राम 

लहसुन १२ फलिया 

नीबू का रस ३० मिलीलीटर 

दही २०० ग्राम

आलुओ को अच्छी तरह धो कर बिना छीले ही दो भागो (एक का दो) मे काट लें ।

पतीले में आलुओ को कवर होने तक (या उससे भी कम ) का पानी भरकर उबलने के लिए चढ़ा दे,और साथ में थोड़ा- थोड़ा सा हल्दी,नमक,जीरा,सोंफ,कलोंजी भी पानी में डाल देते है।

जब आलू थोड़े नरम हो जाए तो पानी छान ले और यहां हमको कोशिश ये करनी चाहिए की पानी आलुओ को उबालते हुए ही सुख जाये तो ज्यादा अच्छा रहेगा (पानी की मात्रा और आंच कम- ज्यादा करने से आसानी से हो जाता है ) 

प्याज़ को स्लाइस जबकि लहसुन और अदरक को बारीक़ (chop) काट ले। दही को फैट ले। 

कढ़ाई में सरसों का तेल धुआँ निकलने तक गरम करें ताकि उसका तीख़ापन ख़त्म हो जाये। आंच धीमी करके घी को इसमें ही मिला दे जब थोड़ा गरम हो जाये तब कटा हुआ प्याज़ डाले और ब्राउन होने तक फ्राई करे,पकने के बाद प्याज़ को कढ़ाई से बाहर निकाल ले।  

अब इसी तेल को पुनः गरम करके साबुत लालमिर्च डाल कर काला होने तक पकाए अब मिर्च को निकल कर हटा दे, इनसे हमको इस घी में जो फ्लेवर लेना था वो आ गया है।  

अब तेल में राई,हींग,लौंग डालकर कड़कने तक पकाते है, इसके बाद जीरा , सौंफ, कलोंजी डालने के साथ ही उबले हुए आलू भी डाल दे। अदरक लहसुन और गुड़ डालकर २ से ३ मिनट तक अच्छी तरह से भुने। अब थोड़ा सा पानी डालकर और पकाए। नीबू का रस डाले और अच्छी तरह मिला ले।  

आंच बंद करके दही डाल कर बंद आंच पर ही मिलाते रहे जब थोड़ा ठंडा हो जाये तो फिर धीमी-धीमी आँच पर पकाए क्योंकि तेज आंच पर दही के फटने का डर काफी ज्यादा रहता है। 

अब मसाला गाढ़ा होने के बाद फ्राई किया हुआ प्याज़ मिलाकर पकाये।  

‘आतिशी (spicy) अचारी आलु’ तैयार है, सफ़र में आपके साथ जाने के लिए। रास्ते भर खाये और जरुरतमंदो को भी खिलाये क्योंकि खुशियाँ औरो को खिलाने से भी बहुत मिलती है।

 

किसी ने क्या मार्मिक लिखा है —

रोटियां ३ दिन पुरानी थी 

और भूख ४ दिन 

वो गरीब बड़े आराम से खा गयी 

क्योंकि रोटी भूख के मुक़ाबले 

ताज़ी थी।

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