नौरोजी नगर के प्रसिद्ध पकोड़े हो या गीता भवन (ऋषिकेश) के दोनों का स्वाद कभी नहीं बदलता,पर जब आप नौरोजी नगर से गीता भवन पहुंचते है तो बहुत कुछ बदल जाता है,विशेषकर हमारी मनोदशा। 

जहां एक और हम दिल्ली में आपाधापी,भागमभाग वाला जीवन जी रहे होते है वही ऋषिकेश में पहुंचकर हमको एक ठहराव सा,एक सुकून सा अनुभव होता है।

यूँ तो मै कई बार बाइक द्वारा दिल्ली से  ऋषिकेश जा चुका हू परन्तु अबकी बार जाते समय अनजाने में ही जो रास्ता लिया वो काफी सुविधाजनक और मनोरम दृश्यो से भरा हुआ था क्योंकि यह नहर के किनारे- किनारे बनाया गया हुआ है। इसके अलावा इस रस्ते पर आपको बहुत सारे गांव भी मिलेंगें, थोड़ी देर ठहरकर आप वहाँ की जीवनशैली का भी अनुभव ले सकते है। 

इस रास्ते पर हम मोदीनगर से मंगलौर तक गये,सुबह की निकलती हुई धूप के साथ यह सफ़र काफी आनंददायी होता जा रहा था।

दिल्ली से सुबह ५ बजे निकलने के बाद रास्ते में २ जग़ह रुकते हुए  लगभग ११ बजे हम स्वामी दयानन्द आश्रम (ऋषिकेश ) में पहुंच गए थे। 

आश्रम के पास सुंदर गंगा तट पर स्नान किया उसके बाद आश्रम में बनने वाला सात्विक,सुस्वादिष्ट भंडारा खाने के बाद जानकी सेतु जो आश्रम के  बिलकुल पास में ही है, से पार होते हुए दूसरी तरफ चौरासी कुटिया,गीता भवन में थोड़ा घूमने के बाद,राम झूला,लक्ष्मण झूला के पास से निकलते हुए जा पहुंचे शिवपुरी जहाँ ओशो आश्रम में वहां पर होने वाली ध्यान किर्या और  रुकने के नियम कानून जाने,फिर  बाज़ार से घूमते हुए राम झूला से पार करके वापिस पहुंचे पर्मार्थ आश्रम। 

 

परमार्थ आश्रम के पास ही  ‘भारत साधु समाज योगाश्रम’ है जिसमे सस्ते में कमरा मिल जाता है ( र ३००-३५०) मै अक्सर वही पर ठहरता हु क्योकि यह जानकी सेतु,राम झूला के बीच में और गंगा तट के बिलकुल सामने है,जब भी हम कमरे के बहार देखते है तो माँ गंगा के दर्शन होते है। 

यू तो गंगा तट पर सुबह-शाम लगभग सभी आश्रम आरती करते है,पर शाम की आरती जो परमार्थ आश्रम के सामने होती है काफी भव्य है और इस समय काफी भक्त लोग यहाँ इकठ्ठे होते है,सकरात्मक ऊर्जा महसूस की जा सकती है।

गंगा तट पर रात के समय बैठना और चाय पीना भी एक संतुष्ट करने वाला अनुभव होता है तो हमने भी इसका आनंद लिया जब तक कि गंगा तट लोगो से खाली नहीं हो गया।

अगली सुबह गंगा स्नान के बाद लगभग ७ बजे नीलकंठ की तरफ यात्रा शुरू की जो २२ -२३  किमी थी। 

थोड़ी दूर चलने के बाद थोड़ा समय फूलचट्टी और पथरचट्टी गंगा तट पर भी रहे जो भीड़भाड़ से दूर जंगल में है,यहां से राफ्टिंग भी होती है।

इसके बाद घुमावदार रास्तों का आनंद लेते हुए हम नीलकंठ महादेव पहुंच गए।

अब से लगभग दो दशक पहले भी मै नीलकंठ महादेव मंदिर आ चुका था मैंने देखा अंदर से तो कुछ नहीं बदला पर बाहर से बहुत कुछ बदल गया या कहे सब कुछ ही बदल गया। 

वहाँ पर फोर्स भी काफी थी,मतलब सुरक्षा के बढ़िया इंतजाम है।

अपने वाहन से घूमने जाने पर सबसे बड़ा लाभ यही होता है कि हम कही आसपास भी जा सकते है,तो हम भी निकल गए महादेव मंदिर से आगे गणेश मंदिर और उससे आगे झिलमिल गुफा। 

यहां पर माहौल एकदम शांत है,आप महसूस कर सकते है चुपचाप बैठकर प्रकृति और प्राकृतिक रूप से बनी चीजों को देखना कितना सुकून देने वाला होता है।

नीलकंठ मंदिर से वापिस परमार्थ आश्रम आने में ज़्यादा समय नहीं लगा लगभग दोपहर १ बजे लंच के समय पहुंच गए क्योंकि डिनर इतना अच्छा था तो लंच भी इधर ही करने का मन था और देखना था कि अब लंच कैसा होगा?

बता दे लंच, डिनर से भी अच्छा था। कटहल की सब्ज़ी तो बहुत ही अच्छी तरह बनाई हुई थी। 

इसके अलावा और आश्रमों में घूमते हुए दोपहर ३ बजे वापस दिल्ली की तरफ प्रस्थान किया। 

रास्ते में ३ जग़ह ढ़ाबो पर चाय पिते हुए हम लगभग रात  ९.३० बजे दिल्ली पहुँच गए,बिलकुल रिफ्रेश,रेजुवेनेट,रिकवर होकर !

कुछ सुझाव : 

  • साथ में कम से कम सामान ले, केवल जरूरत भर का। 
  • यात्रा पर निकलने का समय सुबह-सुबह ४-५ बजे सबसे उपयुक्त रहता है,उगते हुए सूर्य देव के दर्शन भी हो जाते है, जो की महानगरों में रहने वालो को कम ही हो पाते है। 
  • कपड़े,समान की पैकिंग रात में ही कर लेनी चाहिए,सुबह तो बस बैग उठाओ और चलो।  अपने वाहन की सर्विस भी देख लेनी चाहिए।
  • रास्ते का आनंद ले मंज़िल पर पहुँचने की हड़बड़ी बिल्कुल न करे,मतलब आराम से चले पर चलते रहे। 
  • रास्ते में कम से कम खाये और खाना ही हैं तो फल खाये,भूख मिटाने का अच्छा उपाय है। परन्तु पानी पीने में बिलकुल भी कंजूसी न करे।
  • लंगर या आश्रम में खाना खाने का अपना ही एक आनंद है,थोड़ा सर्च करे,लोकल लोगो से पूछताछ करे बिना किसी शर्म के। 
  • मिलनसार और सौम्य स्वभाव रखे,क्षमा भाव हमेशा शांतिदायक होता है,क्योंकि यात्रा में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग मिलते है। 

THE WORLD IS A BOOK,AND THOSE WHO DO NOT TRAVEL READ ONLY ONE PAGE.                                                                                                                                                   (Saint Augustine)

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