जैसा कि हम जानते है भगवन बुद्ध ने आज से लगभग 2500 वर्ष पहले इस ध्यान की विधि की खोज की ।

इस पोस्ट मे,मै आपको अपना  विपश्यना का अनुभव शेयर करूंगा मुझे पूरा विश्वाश जो भी इसके बारे में आप जानना चाहते है आपको जरुरी जानकारी प्राप्त हो जाये ।

हमारा शिविर 27 मार्च 2019 से 7th अप्रैल 2019 तक था ।

वर्तमान में मै  जिस रेस्टोरेंट में अपनी सेवाए दे रहा हू,वहां पर चीन, जापान, थाईलैंड, मलेशिया,म्यांमार,स्पैन आदि देशों  के पर्यटक समूह भोजन ग्रहण करने आते है,इन्ही लोगो के साथ वार्तालाप के दौरान मुझे इस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त हुई, परन्तु व्यस्तता के कारण बात आयी गयी हो गयी।

 

फिर खबर आयी एक नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और एक  अन्य राष्ट्रीय पार्टी  के नेता विपश्यना के लिए गए है,मन में इसको जानने की उत्सुकता हुई।

 

हमारे रेस्टोरेंट में एक तरफ बुक रखने का कोना है,वहां पर विपश्यना की बहुत ही अच्छी किताब रखी थी,उसको पढ़ कर मन में आया क्यों न एक बार किसी केंद्र को जा कर  देखा जाये।

और अधिक जानकारी मैंने dhamma पर जाकर ली और अपना रजिस्ट्रेशन कराया जो उस समय हो न सका क्योंकि सीट पूरी हो चुकी थी।

जिस दिन पुनः नामांकन होना था उसका अपने फोन में रिमाइंडर लगा लिया और उस दिन रात को १२ बजे ही नामांकन करना शुरु कर दिया एक दो बार के बाद यह सफलतापूर्वक हो  भी गया फ़ोन पर इसकी पुष्टि की खबर भी केंद्र की तरफ से आ गयी। बाद में जब वहां पहुँचकर अन्य साधको से बात हुई तो पता चला अधिकतर सभी लोगो ने उसी रात ही अपना नामांकन किया था (आप भी ध्यान रखे यदि नामांकन करना चाहते हो तो नामांकन के पहले ही दिन करे क्योंकि सीट जल्दी ही भर जाती है

शिविर तो १० दिन को होता है परंतु १२ दिन लगते है एक दिन पहले पहुँचना होता है और अंतिम दिन सुबह १० बजे तक का समय लग जाता है।

इसलिए मेरा ट्रेन का आरक्षण भी एक दिन पहले (२६ मार्च २०१९) को था।

२७ मार्च २०१९ की सुबह मैं दिल्ली से देहरादून पहुंच चुका था,मन में बहुत सारे सवाल लिए।

जहां तक मुझे याद है केंद्र में पहुंचने वाला मैं पहला साधक था। वहाँ  पहुँचकर सूचना पट्ट पर अपना नाम आरक्षित सूची में देखा,जिसमे काफी नाम विदेशी साधको के भी थे।

आश्रम का एक पूरा चक्कर लगाया,नाश्ता किया जिसमे पोहा,चाय और केला था। 

तब तक और भी साधक आ  गए थे। सभी के साथ वार्तालाप हुआ और उनके विचार जाने किसी को कुछ समस्या तो किसी को कुछ, उनमें से कुछ  मेरे जैसे भी थे,जिनको विपश्यना के बारे में कुछ ज्यादा पता नहीं था बस आ गए कुछ तूफानी करने।

अब यहाँ दोबारा से नामांकन शुरु हुआ कौन  आया और कौन नहीं,वैसे तो केंद्र से दो रोज पहले भी फोन आता है आप आ रहे या नहीं यह जानने के लिए। यदि कोई नहीं आता तो उसकी सीट अन्य प्रतीक्षा सूची वाले साधक को दे दी जाती है।

नामांकन के दौरान आपकी मानसिक क्षमता को परखा जाता है आप साधना कर पाएंगे या नहीं,क्योंकि साधना वास्तव में बहुत ही कठिन है,जिसके पहले ३ दिन ज्यादा कष्टकारी है,जिनमे कई साधक तरह तरह के बहाने  लगाकर घर वापिस जाना चाहते है। पर समझना जरूरी है यह एक तरह से मन की शल्य चिकित्सा है  जिसे आप बीच  में नहीं छोड़ सकते,और यह वहां बताया भी जाता है।

आवास आवंटन:

आपके कमरे का निर्धारण कर  दिया जाता है, महंगा सामान,घडी,फ़ोन,आदि सामान लॉकर  में जमा कर  लिया जाता है,जो शिविर समाप्त  होने के बाद में ही मिलता है। 

 

ये सभी प्रक्रिया पूरी करके मन किया आसपास देख लिया जाये क्योंकि फिर अगले १० दिन तक तो केंद्र से बाहर नहीं निकलना था,केंद्र के पीछे एक छोटी सी  नदी बहती है वहां बिताई गयी पहली शाम भी बड़ी यादगार थी।

शाम ६ बजे के करीब भोजन के बाद सभागार में सभी स्त्री पुरुष साधक  बुलाये जाते है, सभी को अलग अलग  एक विशेष नम्बर दे दिया जाता है,जिससे उनकी सीट,बर्तन आदि का निर्धारण होता है। यह पूरे शिविर निश्चित होता है।

साधना

उसी रात को पहली साधना होती है और हम मौन हो जाते है वो भी आर्य मौन मतलब आप इशारो  से भी बात नहीं करोगे और आप यकीन  मानिये यह साधना में बड़ा सहयोग करता  है,किसी से नजर मत मिलाओ,उसका आकलन मत करो तो मन जल्दी स्थिर हो जाता है।

 

अगली सुबह ४ बजे घंटी बजाकर उठा दिया जाता है

आधा घंटा के अंदर मैडिटेशन हॉल में पहुँचना होता है। 

 

सुबह ४ वबाजे से रात ९ बजे तक  लगभग १० घंटे आप साधना में होते है। बैठ बैठ कर कमर लगता है टूट ही जाएगी,परन्तु मेरा पहले दिन का अनुभव जबरदस्त रहा लग  रहा था मानो कोई सिर को हथोड़े से फोड़ रहा है भयंकर दर्द,रात में कब नींद आयी पता ही नहीं चला।

दूसरी रात और बुरा हाल कमर और सिर में बहस छिड़ी थी कौन ज्यादा परेशान है।

तीसरे दिन शरीर को अब मालूम हो गया था कुछ नहीं होने वाला आने वाले दिन ऐसे ही रहने वाले है।

पहले तीन दिन केवल सांसो पर ध्यान दिया जाता है,वो कैसे आ रही है,और जा रही है,इसको आनापान कहते है।

काम तो कोई बड़ा भी  नहीं है न सांसो को कम करना न तेज बस देखना है, यही तो विपश्यना है जो जैसा है उसको  वैसा ही देखना अपनी तरफ से ना कुछ जोड़ना न घटाना ..

तीन  दिनों तक १०-१० घंटे सांसों पर ध्यान देने से जो मन इधर -उधर भाग रहा था अब ठहरने लगा था।

चौथे  रोज दोपहर से विपश्यना शुरु होती है जिसमे शरीर को ऊपर से नीचे, फिर नीचे  से ऊपर बंद आँखों से ही देखना पड़ता है हर अंग को।

एक दो रोज बाद हम देखते है शरीर एक्स रे मशीन की तरह काम करता है,किसी अंग में गर्मी तो कही पर सर्दी तो कही पर दर्द तो कही पर कम्पन्न, क्या क्या नहीं हो रहा होता शरीर में। और वो हमेशा ही हो रहा होता है पर पता विपश्यना में ही चलता है। 

एक अजीब सा आनंद मिलता है

इस सबको बस साक्षी भाव से देखते रहते है कोई प्रतिक्रिया नहीं ये सभी सवेंदनाए स्वतः बनती और खत्म  होती  रहती है,कभी कभी तेज खुजली सी महसूस होती है और थोड़ी देर में ख़त्म भी हो जाती है, रोजाना नए नए अनुभव होते है और दस दिन बाद आप कितना हुल्का महसूस करेंगे ये खुद तप कर ही जाना जा सकता है। 

क्यों कठिन है साधना

साधना के दौरान आप के पास करने को ध्यान के अलावा करने के लिए कुछ नहीं है। पढ़ने का थोड़ा शौकीन होने की वजह से मै तो सुचना पट्ट ही बार बार पढता रहता था दिन मे  कई बार और वही पुरानी  खबरे क्योंकि और कुछ आप पढ़ भी नहीं सकते।

आमोद प्रमोद के साधन

बस एक ही है,आप टहल सकते है काफी लंबा रास्ता है। 

पर ज्यादातर लोग बिस्तर में पहुंच जाते है,शायद वो भी आमोद प्रमोद का साधन हो।

भोजनालय

इसमें भी आपके बर्तनो के अलावा सीट भी निश्चित होगी उसी पर बैठना है सम्पूर्ण शिविर । 

सुबह ६.३० पर नाश्ता मिलता है जिसमे पोहा,उपमा,दलिया खिचड़ी,चाय,दूध,फल आदि बदल बदल कर मिलते रहते है।

११-१२ बजे दोपहर का खाना मिलता है जो शुद्ध सात्विक बहुत अच्छा होता है जिसमे दाल,चावल.रोटी,दही के अतिरिक्त सब्ज़ी होती है जो रोज बदलती  है  पर सलाह है खाना ज्यादा न खाये साधना में  दिक्कत आती है। सलाद ज्यादा खाये।

शाम को ६-३० पर चाय,दूध के साथ मुरमुरा मिलता है जिसमे भुने हुए चने,मूमफली डालें  होते है,ये ही रात का भोजन है,और कुछ नहीं है।

मन और शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव

अन्य लोगो के बारे में बताना तो शायद मेरे लिए इतना मुमकिन न हो पर मेरा अनुभव ऐसा रहा…..

जब मै थोड़ा ध्यान में जाने लगा था तो करुणा का भाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था जीवन में केवल अपनी ही गलती नज़र आ रही थी किसी अन्य व्यक्ति की नहीं चाहे भले ही उस व्यक्ति ने हमारे हिसाब से हमारे साथ बुरा ही क्यों न किया हो। मन में जो राग,द्धेष  की गांठे थी वो सब  खुल गयी थी,मन निर्मल हो गया था।

साधना के दौरान आपको अपने बचपन में जब से होश संभाला है से लेकर उस दिन जब आप साधना केंद्र में साधना कर रहे है, आपको जीवन की हर छोटी बड़ी बात याद आती है,कहाँ कहाँ के गड़े मुर्दे सामने आते जाते है पर आप सब को माफ़ करते है या मन ही मन माफ़ी मांगते है,जिससे मन बड़ा हल्का हो जाता है।और यह परम् सत्य है जब तक आप में लोगो को माफ़ करने  का गुण विकसित नहीं होगा,आप शांत रह ही नहीं सकते।

शरीर में कष्ट सहने की शक्ति ज्यादा हो गयी,पहले पैर सुन्न होते थे तो डर लगता था,वहां पर इतना पैर सुन्न हुए डर  ही निकल गया।

प्रतिकिर्या  का समय बढ़ गया,अब कानो में वही आवाज आती है जो आनी चाहिए,सबका शोर नहीं और भी कई अंतर मैंने अपने अंदर देखे है जो जीवन-भर साथ रहेंगे।

 सुझाव

सबसे बड़ी बात ये समझ ले यह विपश्यना करना इतना आसान नहीं है, मेरा मन भी रोज करता था की आज तो कमर लगाने के लिए छोटी सी कुर्सी मांग ही लेता हूँ और दो तीन तकिये भी (पैरो के नीचे लगाने के लिए )  पर टालता रहा और शिविर पूरा भी हो गया।

साधना के दौरान आपके मन में बहुत सारे सवाल आएंगे उन सब का निवारण रात ७ से ८-३० तक होने वाले श्रद्धेय गोएन्का गुरु जी (जो इस विधा को भारत में  लाये और सारे  विश्व में फैलाया ) के वीडियो  प्रवचन में हो जायेगा।

प्रवचन में आपको कहानिया  सुनने को मिलेंगी,जिस में कई बातो पर हॅसने  का सौभाग्य भी मिलेगा।

यदि आप कम बोलने का,कम खाने का और अधिक देर तक बैठने का अभ्यास शिविर से पहले ही कर ले तो शायद आपको कम परेशानी लगे और आप थोड़ा खुश रह पाए, पर यह निश्चित है शिविर पूरा करके आप जरूर आनंददायी अनुभव करेंगे…

…. बुद्धम शरणम गच्छामि!!!

 

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